Monday 3 May, 2010

Ab Main Kavitayen Nahi Likhta

अब मैं कवितायेँ नहीं लिखता
काम करता हूँ.........
सुबह से शाम तक
पत्ते खेलता हूँ
बातें करता हूँ
यहाँ - वहां हर किसी से.

कि किताबों - कॉपियों,
पेड़-पौधों,
संवेदना, विचार,
अनुशासन, नियम,
आचार के लिए 
वक़्त नहीं मिलता.

कि आँखें नहीं देखती अब
चश्मा हटाकर 
धूप तेज लगती है,
मिचमिची,
धूल-धूल,
गंदगी.

कि ये त्याग-तपस्या........
बकवास!
जिन्दगी जीता हूँ-
अल्हड,
अनबन.


कि लैपटॉप में रात ढले तक ढूंढता हूँ-
Hitech !!! 
अब मैं कवितायें नहीं लिखता.



 

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