Thursday 20 May, 2010

Jise log Jindgi kahte hain

अब मेरे पास वक़्त नहीं होता है. मैं साढ़े छः बजे दिन की शुरुआत करता हूँ. सुबह काफी हलकी-फुल्की होती है. मेरी शादी नहीं हुई अभी. ऑफिस के लिए तैयार होता हूँ. आठ बजे कमरे का दरवाजा बंद कर निकलता हूँ. नास्ते में पराठे के लिए आधे घंटे इंतज़ार करता हूँ. उसे चिल्लर देने के लिए जूस पीता हूँ. पार्किंग तक पहुँचने के लिए ऑटो लेता हूँ. तंग गलियों से drive  करता हूँ. दोस्तों को बिठाता हुआ चलता हूँ. रेड लाइट पर पुलिस वाला पैसे मांगता है. आगे बढ़ता हूँ. अगली रेड लाइट पर भीख मांगती एक जवान लड़की शीशा खटखटाती है. महिपालपुर में जाम में आधा घंटे फंसता हूँ. देर से ऑफिस पहुँचता हूँ. परिचय पत्र दिखाकर ऑफिस एरिया में दाखिल होता हूँ. सहकर्मियों को अनमना सा अभिवादन करता हूँ. लैपटॉप खोलता हूँ, काम की प्लानिंग करता हूँ. साईट की गर्मी में पसीने बहाता हूँ. रात ढले घर लौटता  हूँ. माकन मालिक से पार्किंग के लिए झगड़ता  हूँ. फ़ोन पर गर्ल फ्रेंड की शर्ते सुनता हूँ, माँ की अपेक्षाएं भी. रात को पचास रूपये खर्च कर दो ठंडी रोटी खाता हूँ. कमरे की तपती गर्मी में बदन सीधा करता हूँ. आँखों में सुर्खी सी है, चेहरा तेजहीन, मैं आजकल गुडगाँव में रहता हूँ.

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