Wednesday 26 May, 2010

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Thursday 20 May, 2010

Jise log Jindgi kahte hain

अब मेरे पास वक़्त नहीं होता है. मैं साढ़े छः बजे दिन की शुरुआत करता हूँ. सुबह काफी हलकी-फुल्की होती है. मेरी शादी नहीं हुई अभी. ऑफिस के लिए तैयार होता हूँ. आठ बजे कमरे का दरवाजा बंद कर निकलता हूँ. नास्ते में पराठे के लिए आधे घंटे इंतज़ार करता हूँ. उसे चिल्लर देने के लिए जूस पीता हूँ. पार्किंग तक पहुँचने के लिए ऑटो लेता हूँ. तंग गलियों से drive  करता हूँ. दोस्तों को बिठाता हुआ चलता हूँ. रेड लाइट पर पुलिस वाला पैसे मांगता है. आगे बढ़ता हूँ. अगली रेड लाइट पर भीख मांगती एक जवान लड़की शीशा खटखटाती है. महिपालपुर में जाम में आधा घंटे फंसता हूँ. देर से ऑफिस पहुँचता हूँ. परिचय पत्र दिखाकर ऑफिस एरिया में दाखिल होता हूँ. सहकर्मियों को अनमना सा अभिवादन करता हूँ. लैपटॉप खोलता हूँ, काम की प्लानिंग करता हूँ. साईट की गर्मी में पसीने बहाता हूँ. रात ढले घर लौटता  हूँ. माकन मालिक से पार्किंग के लिए झगड़ता  हूँ. फ़ोन पर गर्ल फ्रेंड की शर्ते सुनता हूँ, माँ की अपेक्षाएं भी. रात को पचास रूपये खर्च कर दो ठंडी रोटी खाता हूँ. कमरे की तपती गर्मी में बदन सीधा करता हूँ. आँखों में सुर्खी सी है, चेहरा तेजहीन, मैं आजकल गुडगाँव में रहता हूँ.

Monday 3 May, 2010

Aansu Aur Paani

"समय कि शिला पर मधुर चित्र कितने,
किसी ने बनाए, किसी ने मिटाए,
किसी ने लिखी आंसुओं की कहानी,
किसी ने पढ़ा सिर्फ दो बूँद पानी."

Ab Main Kavitayen Nahi Likhta

अब मैं कवितायेँ नहीं लिखता
काम करता हूँ.........
सुबह से शाम तक
पत्ते खेलता हूँ
बातें करता हूँ
यहाँ - वहां हर किसी से.

कि किताबों - कॉपियों,
पेड़-पौधों,
संवेदना, विचार,
अनुशासन, नियम,
आचार के लिए 
वक़्त नहीं मिलता.

कि आँखें नहीं देखती अब
चश्मा हटाकर 
धूप तेज लगती है,
मिचमिची,
धूल-धूल,
गंदगी.

कि ये त्याग-तपस्या........
बकवास!
जिन्दगी जीता हूँ-
अल्हड,
अनबन.


कि लैपटॉप में रात ढले तक ढूंढता हूँ-
Hitech !!! 
अब मैं कवितायें नहीं लिखता.